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Friday 2 December 2016

पल्लू गाँव का प्राचीन पवित्र थेहड़ और मूर्तिकला भाग-2


राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले के गाँव पल्लू  के बीचोबीच एक प्रांचीन थेहड़ बना हुआ है।
रियासत काल में   सन 1917 में इटली के  राजस्थानी भाषाविद्ध और पुरावेत्ता डॉ लुईजी पीओ
तैसीतोरीने पल्लु गाँव के पुराने थेहड़ की खुदाई कराई और यहाँ के थेहड़ से 11 वीं  शताब्दी
की दो जैन सरस्वती की मूर्तियां मिली। उनमें से एक मूर्ति आज राष्ट्रीय संग्राहालय दिल्ली की
शोभा बढ़ा रही है तो दूसरी बीकानेर के संग्राहालय की। इन जैन सरस्वती की मूर्तियों से यह अनुमान
लगाया जाता है की 11 वीं शताब्दी में पल्लु  निवाशी जैन धर्म को मानने वाले थे।

राष्ट्रीय संग्राहालय नई दिल्ली में सरस्वती मूर्ति :-
                           (राष्ट्रीय संग्राहालय नई दिल्ली में पल्लू गाँव से प्राप्त सरस्वती मूर्ति)


इस संग्राहालय में राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के पल्लू स्थान से प्राप्त 1.48  मीटर  ऊँचाई की
श्वेत संगमरमर से बनी खड्गासन सरस्वती की मूर्ति है। चार भुजाओं वाली सरस्वती देवी एक पूर्ण
विकसित पदम् -पुष्प पर आकर्षक त्रिभंग मुद्रा में खड़ी है। देवी अपनी बायीं भुजा में ऊपर के हाथ में
डोरी से बँधी हुई एक ताड़पत्रीय पोथी नीचे के हाथ में एक जल कलस (कमण्डल ) धारण किये हुए है।
दाहिनी भुजा में ऊपर के हाथ श्वेत कमल और नीचेके हाथ की हथेली में अक्षमाला ग्रहण किये धारण
किये है।

मां सरस्वती एक पारदर्शी वस्त्र धारण किये है। ये देवी शीश पर अति अलंकृत शिरोभूषन ,कण्ठमाला
और भुजबन्ध धारण किये है और साड़ी कटि -भाग  पर एक अत्यन्त अलंकृत करधनी (तागड़ी ) से
बँधी हुई है। देवी के सिर के पीछे कमलाकार आभामण्डल  है  और ऊपर जिनेन्द्र की लघु मूर्ति है।
यह मूर्ति चौहान काल की एक उत्कृष्ट कृति  मानी जाती है। नई  दिल्ली के राष्ट्रीय संग्राहालय के
अनुसार ये देश की दुर्लभ मूर्ति यानि संग्राहालय का प्राउड कलेक्सन है।
इस मूर्ति के बारे में अधिक जानकारी  आप नई  दिल्ली के राष्ट्रीय संग्राहालय की वेबसाइट पर
प्राप्त कर सकते है। यहाँ पर  क्लीक  करे http://www.nationalmuseumindia.gov.in/prodCollections

बीकानेर संग्राहालय जैन सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति :-



(बीकानेर संग्राहालय  में पल्लू गाँव से प्राप्त जैन सरस्वती वाग्देवी मूर्ति)



बीकानेर संग्राहालय में भी पल्लू गाँव से प्राप्त मूर्ति सफेद संगमरमर की बनी जैन सरस्वती वाग्देवी की
है। मुख्य मूर्ति नई  दिल्ली के राष्ट्रीय संग्राहालय की मूर्ति से  काफी समानता रखती है। किन्तु  दाहिने
और पार्श्व भाग में परिचारिकाओं के ऊपर एक -एक  लघु  आकृति  बनी हुई है। इस मूर्ति के दोनों और
पार्श्व  में अलंकृत स्तंभो और तोरण से सज्जित है।  तोरण के शीर्ष भाग पर तथा दोनों पार्श्व में मन्दिर
के तीन आका बने है। यह मूर्ति बेहद खूबसूरत है।
जिस प्रकार हिंदु प्रतिमाओं में सरस्वती का जो महत्व है वही वाग्देवी सरस्वती का जैन धर्म में है।
ये दोनों जैन सरस्वती प्रतिमाएँ राजस्थान की मध्यकाल की कला उत्कृट  कृतियां  हैं।



संकलनकर्ता :-जगदीश मनीराम साहू (निवाशी ढाणी छिपोलाई )

Sunday 27 November 2016

पल्लु का प्राचीन पवित्र थेहड़ और मूर्तिकला भाग-1

            (दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में पल्लु गाँव  से मिली चौहान काल की सरस्वती की दुर्लभ मूर्ति )


पल्लु गाँव के पुरातन समय का एक सामान्य परिचय :-

राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ ज़िले का  पल्लु गाँव एक ऐतिहासिक ,धार्मिक एवं पुरा महत्व  का
गाँव है। यह गाँव उपतहसील मुख्यालय भी है। पुरातन समय में नदी घाटी सभ्यता का इलाका रहा है
यह गाँव बहुत ही पुराना बसा हुआ है। पल्लु गाँव बहुत बार बसा  फिर उजड़ा ,फिर बसा फिर उजड़ा . 

पल्लु गाँव  अलग-अलग समय काल में बसा और उजड़ा है। इसलिये  हर काल में पल्लु गाँव की एक अलग 
कहानी है जो पुर्व की  कहानी से मेल नहीं  खाती है। इस गाँव के बारे बड़े बुज़ुर्ग कई दन्तकथा बताते है। 
इस गाँव से सम्बंधित एक घटना कई ख्यातों में भी वर्णित है। 

अलग -अलग समय में पल्लु गाँव में कभी किलूर राजा का राज रहा है तो कभी सिहाग जाटों का,
तो बीकानेर के के राजपुत राजाओं का, तो कभी परमारों राजाओं ने राज किया है। यह इलाका चौहान 
काल में जैन धर्म का महत्व पुर्ण स्थान रहा है। यह गाँव कभी  पहले किलूर कोट नाम से फेमस 
रहा है तो कभी प्रह्लादपुर के नाम से ,अभी यह जाट सरदार की लड़की पल्लु नाम से प्रसिद्ध है। 

किलूर राजा के बनाये हुए गढ़  'किलूर कोट'  काल की भयंकर विनाश लीलाओं के कारण नष्ट 
हो चुका है और वहाँ पर आज  एक थेहड़ बना हुआ है। इस ऊँचे थेहड़ पर इस समय ब्राह्मणी माता 
का प्रसिद्ध मन्दिर बना है। थेहड़ पर अनेक घर बने हुए है। इस गाँव के चारों ओर रेगिस्तान का 
थार मरुस्थल है। इसकी  भौगोलिक स्थिति बाड़मेर ,जैसलमेर और चुरू की तरह है। इस गाँव 
के आस पास कहीं भी पहाड़ नहीं है किन्तु इस गाँव के थेहड़ से प्रस्तर मूर्तियां प्राप्त हुइ है। 
इस के खनन से मिली मूर्तियों से इस गाँव की उस समय की समृद्धि का अंदाज आप ख़ुद लगा
 सकते है। 

मध्ययुग  में यह किला आबाद रहा है। यह गाँव ईस्वी सन  1025 में महमूद गजनवी के 
आक्रमण की चपेट में भी आया हुआ है। यहाँ के थेहड़ में मानव हड्डीयाँ अपने समय काल 
के युद्ध की कहानिओं  की निशानियाँ  ही है। 

पल्लु के प्राचीन पवित्र थेहड़  के खननकर्ता डॉ एल पी टैसीटोरी का परिचयः :-

इनका पूरा नाम लुईजी पिओ तैसीतोरी था। इटली के एक छोटे से कस्बे उदीने में 13-12 -1887 
को जन्म हुआ। 8-04 -1914  को  भारत आए और जुलाई 1914 को जयपुर राजस्थान पहुँचे। 
दिसंबर 1915 को बीकानेर पहुँचे। महाराजा गंगसिंह के समय बीकानेर रियासत के सेकड़ों
 गाँवों में घूमकर लगभग 729 पुरालेखों का संग्रह किया ,इसी तरह 981 पुरामहत्व  की मूर्तियाँ
 और पुरामहत्व की दूसरी चिजें खोजी और इकठी की।  डॉ एल पी टैसीटोरी की इकठी की
 पुरामहत्व की की  मुर्तियों और पुरालेखों  से ही  तो बीकानेर संग्रहालय की स्थापना महाराजा
 गंगासिंह के के द्वारा 1937 में की गयी। 

तैसीतोरी को राजस्थानी भाषा व उनकी लिपी के विश्लेषण ,संस्कृति तथा पुरातत्व में 
विशेष योगदान के के लिये याद किया जाता है। राजस्थानी भाषाविद और पुरावेत्ता डॉ 
तैसीतोरी ने रंगमहल का लाखा धोरा का खनन करवा के जो महत्व पूर्ण सिक्के ,टेरीकोटा ,
मिटटी के बर्तनों के टुकड़े ,मालाओं के दाने आदि प्राप्त किये। उनका ऐतिहासिक व पुरातत्वीय 
महत्व बहुत है। इसी प्रकार कालीबंगा ,पीळीबंगा ,बड़ोपल ,रंगमहल  सूरतगढ़ ,भटनेर  तथा 
पल्लु गाँव के थेहड़ की खुदाई का कार्य का बहुत ही महत्व है।

डॉ तैसीतोरी  के द्वारा सन 1917 में पल्लु के थेहड़ से खनन कार्य से शिल्प कला की जो 
दो लगभग  एक जैसी  सस्वती की मूर्तियां मिली है ,वे तो अद्वितीय है ,दुर्लभ है। 
डॉ तैसीतोरी का 32 वर्ष की अल्पायु में ही 22 नवम्बर 1919  को  बीकानेर  में उनका  निधन 
हो गया। उनके निधन की वजह से पल्लु के थेहड़ का खनन रुक गया। डॉ तैसीतोरी थार 
का  इतालवी साधक था,जो राजस्थान की साहित्य ,संस्कृति तथा पुरातत्व को विश्व प्रसिद्द 
करना चाहता था। उनका सपना था कि पल्लु गावँ में एक पुरामहत्व का संग्रहालय बने। 


संकलनकर्ता : जगदीश मनीराम साहू (निवासी ढाणी छिपोलाई )

Wednesday 23 November 2016

पूरा संपदाओं के भंडार है हनुमानगढ़ जिले के थेहड़




पूरा संपदाओं के  भंडार है हनुमानगढ़ जिले के थेहड़ ।


राजस्थान राज्य का हनुमानगढ़ जिले का पुरातात्विक दृष्टि से खासा महत्व है। हनुमानगढ़ ही वह
 जिला है जहाँ हुई खुदाई से युगों के परिवर्तन को बताने वाली अति प्राचीन सभ्यताओं का पता चला
 है जो हजारों  साल पुराणी समद्ध संस्कृति को महिमा मंडित करती है।


इन भू भाग में प्राचीन नगर जो काल की विनाश लीलाओं के कारन नष्ट हो  कर अब थेहड़ बन गये हैं,इन
से प्राप्त मूर्तियां सिक्के तथा अन्य वस्तुऐं  प्रमाणित करती हैं यह इलाका विभिन कालों की संस्कृति
  का पोषक रहा है। प्रत्येक काल  की राजनैतिक ,आर्थिक एवं सामाजिक उथल पुथल से प्रभावित रहा है।



प्राचीन नदी घाटी सभ्यता का केंद्र होने का कारन इस जिले में 100 से अधिक थेहड़ है जहाँ प्राचीन
संस्कृति के अवशेष दबे पड़े है। समय की भयंकर विनाश लीलाओं के कारन नष्ट हो चुके गांव और
 नगर इन थेहड़ों में युगों युगों से जैसे विश्राम कर रहे है। ये थेहड़ आज भी हजारों रहस्य समेटे हुए है।


कालीबंगा में खुदाई हुई तो पूरा पूरी दुनिया जैसे चकित रह गयी क्योंकि यहाँ से निल,वोल्गा और सिंधु
 घाटियों से भी प्राचीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए। महाभारत में वर्णित अष्ठमुनिकार मानवीय
अस्थिपंजर ,अज्ञातलिपि के लेख ,मुद्राएं मोहरे ,मिटी के बरतन ,बहुमुल्य गहने ,मनके ,मूर्तियां ,
खिलौने ,कुँए ,स्नानागार ,किला ,सुव्यवस्थित गलियां ,चौराहें  व नालियां यहां के थेहड़ों से से प्राप्त हुए।


पल्लू ,धानसिया ,करोति ,सोती ,पाण्डूसर ,सोनड़ी ,थिराना ,रावतसर ,लाडम ,मंदरपुरा ,जबरासर ,
भोमियों  की ढाणी ,भूकरका ,बिरकाली ,सिरंगसर ,खोडा ,न्योलकी ,धांधूसर ,बिसरासर ,हनुमानगढ़
,मुंडा ,मसानी,गंगागढ़ ,रोही ,मक्कासर ,सहजीपुरा ,बहलोलनगर ,दुलमाना ,रंगमहल ,बड़ोपल ,
डबलीराठान  और कालीबंगा आदि ऐसे   गाँव है जहाँ  थेहड़ बने है।


पुरातात्विक लिहाज से थेहड़ एक धरोहर है जिसकी खुदाई की जाए तो बहुत सी प्राचीन जानकारियां उपलब्ध हो सकती हैं। यदि इसके थेहड़ों का खनन किया जाएं तथा उनमें से प्राप्त वस्तुओं की आयु का आंकलन किया जाय  तो थेहड़ों वाले इलाके  प्राचीनता प्रकट होगी  तथा  इसके  क्रमिक उत्थान पतन का ज्ञान हो सकेगा।

निराशा के थेहड़ में भी आशा की उज्ज्वल किरण सुरक्षित है हमारे लिए जो आ ही जाएगी। इंतजार समय के पलटने का ।

      संकलनकर्ता :     जगदीश मनीराम साहू (निवासी ढाणी छिपोलाई )