Sunday 23 October 2016

आस्था का संगम है माँ ब्राह्मणी पल्लूवाली का दरबार




राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले का पल्लू  कस्बा माँ ब्राह्मणी माता के मन्दिर के लिये समस्त भारत देश में प्रसिद्ध है। 

वर्ष में दो बार यहाँ  नवरात्रा में विशाल मेला भरता   है। भगतों को आस्था खींच लाती माँ ब्राह्मणी पल्लू वाली के दरबार में। 



जैसे ही नवरात्रा शुरु होते है पल्लू में गूंजते है माँ ब्राह्मणी पल्लू वाली के जयकारे।
पांचवे नवरात्रा के आते ही भगतों संख्या में इजाफा होता है। माँ ब्राह्मणी का मन्दिर मेगा हाइवे
पर होने के कारण सालासर जाने वाले पैदल  भगत जन भी पल्लू में माता रानी के दरबार में धोक
लगाकर जाते है।


अरजनसर से पल्लू  आने वाले और हनुमानगढ़ से पल्लू और सालासर
वाले मेगा हाइवे पर एक तरफ जय बाबे की तो दूसरी तरफ जय माता दी के नारों से गूँजता है।
भगतों को ऐसा नजारा पल्लू में ही मिलता है। इसीलिये तो आस्था का संगम है माँ का दरबार।
मां और बाबे के जयकारे लगाते भक्त माहौल को भक्तिमय बना देते है।

माँ ब्राह्मणी पल्लू वाली का मुख्य मेला सप्तमी और अष्टमी को भरता है। मेले में आस्था का सैलाब
उमड़ता है। चारों और माता के जयकारों की गूंज सुनाई पड़ती है। देशभर से माँ ब्राह्मणी पल्लू
वाली के भक्त यहाँ माँ के दर्शन को आते है।सप्तमी और अष्टमी को धोक लगाने वाले भगतों की
संख्या एक अनुमान के अनुसार 50 हजार से दो लाख के बीच होती है.


चित्र पल्लू निवासी श्रीमान ताराचन्द जी सिहाग की फेसबुक वाल से साभार 

संकलनकर्ता :-जगदीश मनीराम साहू (निवासी ढाणी छिपोलाई )



Tuesday 11 October 2016

सप्तमातृका देविओं के रूप में पल्लू वाली मां ब्राह्मणी माता



     सप्तमातृका  देविओं का विवरण और इनका पल्लु गांव में मां ब्राह्मणी माता  के रूप में पूजन 



           सप्तमातृकाओं के साथ शिव (सबसे बायें) की प्रतिमा (राष्ट्रीय संग्रहालय, नयी दिल्ली)    
                                         (प्रतिमा चित्र विकिपीडिया से साभार )


                                                                                                            
     सप्तमातृका देवियाँ :-
     महादेवी  से उत्पन्न हुई ये सात माताएं या शक्तियाँ  जिनका  पुजन  विवाह आदि शुभ अवसरों
     के पहले होता है। यथा :-ब्रह्माणी ,माहेश्वरी ,कौमारी ,वैष्णवी ,वाराही ,इन्द्राणी और चामुण्डा।

      शुभं और निशुभं  दानवों से  लड़ते समय माता सरस्वती की रक्षा के सभी देवता अपनी शक्ति
      भेजते है ,उन्हें ही सप्तमातृका कहा जाता है।  
      ब्राह्मणी ,माहेश्वरी ,वैष्णवी आदि आर्य शक्ति की देवियाँ हैं। 
     
      चामुण्डा और कौमारी  दक्षिण भारत की द्रविड़ परिवार की कुलदेवियाँ है। 
      मद्राश और कन्याकुमारी में इनकी पूजा होती है।
     
      इसके अलावा स्कंदगुप्त के विहार स्तम्भ में भी एक उल्लेख है।

       सप्तमातृका देविओं  का उल्लेख  सर्वप्रथम संसार की सबसे पुरानी  पुस्तक ऋगवेद में मिलता है

       परन्तुं इनका विस्तृत वर्णन मार्केण्डय पुराण के चंडी महात्म में देवी कवच  में दिया गया है।
 
       दन्तकथाओं और श्रुतिओ के मुताबिक पल्लु का पुराना स्वरूप जिसे कोट किलूर कहा जाता है
       की स्थापना ऋषि मार्केण्डय के आशीर्वाद से ही हुआ है। ऐसा माना जाता की आबू के राजा गजपत
       (गणपत ) के सुपुत्र किलूर ने ऋषि मार्केण्डय के आबू आगमन पर ऋषि की सेवा बहुत ही लगन और
       मनोभाव से की थी ,जिस से खुश होकर ऋषि मार्केण्डय ने किलूर को मनोकामना पूर्ण  होने का
       आशिर्वाद दिया।  इसके बाद आबु राजकुमार ने माँ ब्राह्मणी की ऐसी कठिन तपस्या की ,की
       माता ने  प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो राजकुमार किलूर ने जगत जननी माता राणी
       के चरणों में नमन करके पिता से अलग एक राज्य की स्थापना का वर माँगा।  और माता रानी के
       आशीर्वाद से ब्रह्मवृत प्रदेश में ( वर्तमान पल्लु  गाँव) में कोट किलूर राज्य की स्थापना की।
     
                       और  जोर  से बोलो ब्रह्माणी माता पल्लु वाली जय जयकार

            सकंलनकर्ता :- जगदीश मनीराम साहु (निवासी ढाणी छिपोलाई )

   

 

सनातन धर्म की माताओं (देवियाँ ) के रूप

                                        सनातन   धर्म  की माताओं (देवियाँ ) के रूप 

                 सनातन धर्म में स्रष्टि के मूल स्वरूप शिव भगवान माने गए है।  शिव के ही तीन रूप ब्रह्मा,
                 विष्णु और महेश बने । ब्रह्मा ने संसार रचाया,विष्णु भगवान इसके पालन पोषण  करता है,
                 और सबके प्रिय शिव भगवान  इसके संहारकर्ता है ।इन तीनो भगवान की अर्धागिनीओं को
                 महादेवीं कहा जाता है।भगवान महेश  की अर्धागिनी पार्वती जी है, विष्णु भगवान की
                 अर्धागिनी लक्ष्मी जी है और भगवान  ब्रह्मा की अर्धागिनी सरस्वती जी है। इसीलिए 
                  सनातन धर्म में देविओं के  तीन  भाग माने  गए  है :
                       महादेवी :    
                           1.   पार्वती जी ,2. लक्ष्मी जी , 3. सरस्वती

                         इन  महादेवीओं  से  सभी  देविओं  का प्रादुर्भाव हुआ है !
                          नवदुर्गा :-
                         1. शैलपुत्री
                         2 . ब्रह्मचारिणी
                         3. चंद्रघटा
                         4. कुष्मांडा
                         5 . स्कंदमाता
                         6. कात्यायनी
                         7 .कालरात्रि
                         8 . महागौरी
                         9 . सिद्धिदात्री
                          सप्तमातृका :-
                         1. ब्रह्माणी  (इनका पल्लु गांव में भव्य मन्दिर बना हुआ है।)
                         2. माहेश्वरी
                         3 . कौमारी
                         4 .वैष्णवी
                         5. वाराही
                         6. इन्द्राणी
                         7 .चामुण्डा
                         दस महाविद्या :- 
                         1. काली
                         2. तारा
                         3 . छिन्नमस्ता
                         4. भुवनेश्वरी
                         5. बगुलामुखी
                         6. धुमावती
                         7 . कमला
                         8. मातंगी
                         9 . षोडशी
                        10. भैरवी
         इन सभी देवी रूपों की अपनी अपनी विशेषतायें  है। इनकी अपने अपने गुण ,फल और
          देने की शक्ति है।इन सभी देविओं में माता जगत जननी का रूप निहितहै,इसीलिए                                         इनके  नाम के आगे माता या मां शब्द जोड़े जाते है ।  ये सभी देवी रूप शक्ति का प्रतीक
         भी है ,इसीलिए माता के स्थान को शक्तिपीठ कहा जाता है। देविओं के नाम भी इनके काम                              के अनुरूप ही है ।भारत भूमि के समस्त राज्यों में इन देविओं का किसी न किसी देवी
           का  मन्दिर जरूर मिल जायेगा ।            
                                  बोलिये पल्लु वाली माता ब्राह्मणी की जय हो।

                       संकलनकर्ता :-जगदीश मनीराम साहू (निवासी ढाणी छिपोलाई )