सप्तमातृका देविओं का विवरण और इनका पल्लु गांव में मां ब्राह्मणी माता के रूप में पूजन
सप्तमातृकाओं के साथ शिव (सबसे बायें) की प्रतिमा (राष्ट्रीय संग्रहालय, नयी दिल्ली)
(प्रतिमा चित्र विकिपीडिया से साभार )
सप्तमातृका देवियाँ :-
महादेवी से उत्पन्न हुई ये सात माताएं या शक्तियाँ जिनका पुजन विवाह आदि शुभ अवसरों
के पहले होता है। यथा :-ब्रह्माणी ,माहेश्वरी ,कौमारी ,वैष्णवी ,वाराही ,इन्द्राणी और चामुण्डा।
शुभं और निशुभं दानवों से लड़ते समय माता सरस्वती की रक्षा के सभी देवता अपनी शक्ति
भेजते है ,उन्हें ही सप्तमातृका कहा जाता है।
ब्राह्मणी ,माहेश्वरी ,वैष्णवी आदि आर्य शक्ति की देवियाँ हैं।
चामुण्डा और कौमारी दक्षिण भारत की द्रविड़ परिवार की कुलदेवियाँ है।
मद्राश और कन्याकुमारी में इनकी पूजा होती है।
इसके अलावा स्कंदगुप्त के विहार स्तम्भ में भी एक उल्लेख है।
सप्तमातृका देविओं का उल्लेख सर्वप्रथम संसार की सबसे पुरानी पुस्तक ऋगवेद में मिलता है।
परन्तुं इनका विस्तृत वर्णन मार्केण्डय पुराण के चंडी महात्म में देवी कवच में दिया गया है।
दन्तकथाओं और श्रुतिओ के मुताबिक पल्लु का पुराना स्वरूप जिसे कोट किलूर कहा जाता है
की स्थापना ऋषि मार्केण्डय के आशीर्वाद से ही हुआ है। ऐसा माना जाता की आबू के राजा गजपत
(गणपत ) के सुपुत्र किलूर ने ऋषि मार्केण्डय के आबू आगमन पर ऋषि की सेवा बहुत ही लगन और
मनोभाव से की थी ,जिस से खुश होकर ऋषि मार्केण्डय ने किलूर को मनोकामना पूर्ण होने का
आशिर्वाद दिया। इसके बाद आबु राजकुमार ने माँ ब्राह्मणी की ऐसी कठिन तपस्या की ,की
माता ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो राजकुमार किलूर ने जगत जननी माता राणी
के चरणों में नमन करके पिता से अलग एक राज्य की स्थापना का वर माँगा। और माता रानी के
आशीर्वाद से ब्रह्मवृत प्रदेश में ( वर्तमान पल्लु गाँव) में कोट किलूर राज्य की स्थापना की।
और जोर से बोलो ब्रह्माणी माता पल्लु वाली जय जयकार
सकंलनकर्ता :- जगदीश मनीराम साहु (निवासी ढाणी छिपोलाई )
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