Sunday 27 November 2016

पल्लु का प्राचीन पवित्र थेहड़ और मूर्तिकला भाग-1

            (दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में पल्लु गाँव  से मिली चौहान काल की सरस्वती की दुर्लभ मूर्ति )


पल्लु गाँव के पुरातन समय का एक सामान्य परिचय :-

राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ ज़िले का  पल्लु गाँव एक ऐतिहासिक ,धार्मिक एवं पुरा महत्व  का
गाँव है। यह गाँव उपतहसील मुख्यालय भी है। पुरातन समय में नदी घाटी सभ्यता का इलाका रहा है
यह गाँव बहुत ही पुराना बसा हुआ है। पल्लु गाँव बहुत बार बसा  फिर उजड़ा ,फिर बसा फिर उजड़ा . 

पल्लु गाँव  अलग-अलग समय काल में बसा और उजड़ा है। इसलिये  हर काल में पल्लु गाँव की एक अलग 
कहानी है जो पुर्व की  कहानी से मेल नहीं  खाती है। इस गाँव के बारे बड़े बुज़ुर्ग कई दन्तकथा बताते है। 
इस गाँव से सम्बंधित एक घटना कई ख्यातों में भी वर्णित है। 

अलग -अलग समय में पल्लु गाँव में कभी किलूर राजा का राज रहा है तो कभी सिहाग जाटों का,
तो बीकानेर के के राजपुत राजाओं का, तो कभी परमारों राजाओं ने राज किया है। यह इलाका चौहान 
काल में जैन धर्म का महत्व पुर्ण स्थान रहा है। यह गाँव कभी  पहले किलूर कोट नाम से फेमस 
रहा है तो कभी प्रह्लादपुर के नाम से ,अभी यह जाट सरदार की लड़की पल्लु नाम से प्रसिद्ध है। 

किलूर राजा के बनाये हुए गढ़  'किलूर कोट'  काल की भयंकर विनाश लीलाओं के कारण नष्ट 
हो चुका है और वहाँ पर आज  एक थेहड़ बना हुआ है। इस ऊँचे थेहड़ पर इस समय ब्राह्मणी माता 
का प्रसिद्ध मन्दिर बना है। थेहड़ पर अनेक घर बने हुए है। इस गाँव के चारों ओर रेगिस्तान का 
थार मरुस्थल है। इसकी  भौगोलिक स्थिति बाड़मेर ,जैसलमेर और चुरू की तरह है। इस गाँव 
के आस पास कहीं भी पहाड़ नहीं है किन्तु इस गाँव के थेहड़ से प्रस्तर मूर्तियां प्राप्त हुइ है। 
इस के खनन से मिली मूर्तियों से इस गाँव की उस समय की समृद्धि का अंदाज आप ख़ुद लगा
 सकते है। 

मध्ययुग  में यह किला आबाद रहा है। यह गाँव ईस्वी सन  1025 में महमूद गजनवी के 
आक्रमण की चपेट में भी आया हुआ है। यहाँ के थेहड़ में मानव हड्डीयाँ अपने समय काल 
के युद्ध की कहानिओं  की निशानियाँ  ही है। 

पल्लु के प्राचीन पवित्र थेहड़  के खननकर्ता डॉ एल पी टैसीटोरी का परिचयः :-

इनका पूरा नाम लुईजी पिओ तैसीतोरी था। इटली के एक छोटे से कस्बे उदीने में 13-12 -1887 
को जन्म हुआ। 8-04 -1914  को  भारत आए और जुलाई 1914 को जयपुर राजस्थान पहुँचे। 
दिसंबर 1915 को बीकानेर पहुँचे। महाराजा गंगसिंह के समय बीकानेर रियासत के सेकड़ों
 गाँवों में घूमकर लगभग 729 पुरालेखों का संग्रह किया ,इसी तरह 981 पुरामहत्व  की मूर्तियाँ
 और पुरामहत्व की दूसरी चिजें खोजी और इकठी की।  डॉ एल पी टैसीटोरी की इकठी की
 पुरामहत्व की की  मुर्तियों और पुरालेखों  से ही  तो बीकानेर संग्रहालय की स्थापना महाराजा
 गंगासिंह के के द्वारा 1937 में की गयी। 

तैसीतोरी को राजस्थानी भाषा व उनकी लिपी के विश्लेषण ,संस्कृति तथा पुरातत्व में 
विशेष योगदान के के लिये याद किया जाता है। राजस्थानी भाषाविद और पुरावेत्ता डॉ 
तैसीतोरी ने रंगमहल का लाखा धोरा का खनन करवा के जो महत्व पूर्ण सिक्के ,टेरीकोटा ,
मिटटी के बर्तनों के टुकड़े ,मालाओं के दाने आदि प्राप्त किये। उनका ऐतिहासिक व पुरातत्वीय 
महत्व बहुत है। इसी प्रकार कालीबंगा ,पीळीबंगा ,बड़ोपल ,रंगमहल  सूरतगढ़ ,भटनेर  तथा 
पल्लु गाँव के थेहड़ की खुदाई का कार्य का बहुत ही महत्व है।

डॉ तैसीतोरी  के द्वारा सन 1917 में पल्लु के थेहड़ से खनन कार्य से शिल्प कला की जो 
दो लगभग  एक जैसी  सस्वती की मूर्तियां मिली है ,वे तो अद्वितीय है ,दुर्लभ है। 
डॉ तैसीतोरी का 32 वर्ष की अल्पायु में ही 22 नवम्बर 1919  को  बीकानेर  में उनका  निधन 
हो गया। उनके निधन की वजह से पल्लु के थेहड़ का खनन रुक गया। डॉ तैसीतोरी थार 
का  इतालवी साधक था,जो राजस्थान की साहित्य ,संस्कृति तथा पुरातत्व को विश्व प्रसिद्द 
करना चाहता था। उनका सपना था कि पल्लु गावँ में एक पुरामहत्व का संग्रहालय बने। 


संकलनकर्ता : जगदीश मनीराम साहू (निवासी ढाणी छिपोलाई )

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