राजस्थान राज्य के हनुमानगढ़ जिले के गाँव पल्लू के बीचोबीच एक प्रांचीन थेहड़ बना हुआ है।
रियासत काल में सन 1917 में इटली के राजस्थानी भाषाविद्ध और पुरावेत्ता डॉ लुईजी पीओ
तैसीतोरीने पल्लु गाँव के पुराने थेहड़ की खुदाई कराई और यहाँ के थेहड़ से 11 वीं शताब्दी
की दो जैन सरस्वती की मूर्तियां मिली। उनमें से एक मूर्ति आज राष्ट्रीय संग्राहालय दिल्ली की
शोभा बढ़ा रही है तो दूसरी बीकानेर के संग्राहालय की। इन जैन सरस्वती की मूर्तियों से यह अनुमान
लगाया जाता है की 11 वीं शताब्दी में पल्लु निवाशी जैन धर्म को मानने वाले थे।
राष्ट्रीय संग्राहालय नई दिल्ली में सरस्वती मूर्ति :-
(राष्ट्रीय संग्राहालय नई दिल्ली में पल्लू गाँव से प्राप्त सरस्वती मूर्ति)
इस संग्राहालय में राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के पल्लू स्थान से प्राप्त 1.48 मीटर ऊँचाई की
श्वेत संगमरमर से बनी खड्गासन सरस्वती की मूर्ति है। चार भुजाओं वाली सरस्वती देवी एक पूर्ण
विकसित पदम् -पुष्प पर आकर्षक त्रिभंग मुद्रा में खड़ी है। देवी अपनी बायीं भुजा में ऊपर के हाथ में
डोरी से बँधी हुई एक ताड़पत्रीय पोथी नीचे के हाथ में एक जल कलस (कमण्डल ) धारण किये हुए है।
दाहिनी भुजा में ऊपर के हाथ श्वेत कमल और नीचेके हाथ की हथेली में अक्षमाला ग्रहण किये धारण
किये है।
मां सरस्वती एक पारदर्शी वस्त्र धारण किये है। ये देवी शीश पर अति अलंकृत शिरोभूषन ,कण्ठमाला
और भुजबन्ध धारण किये है और साड़ी कटि -भाग पर एक अत्यन्त अलंकृत करधनी (तागड़ी ) से
बँधी हुई है। देवी के सिर के पीछे कमलाकार आभामण्डल है और ऊपर जिनेन्द्र की लघु मूर्ति है।
यह मूर्ति चौहान काल की एक उत्कृष्ट कृति मानी जाती है। नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्राहालय के
अनुसार ये देश की दुर्लभ मूर्ति यानि संग्राहालय का प्राउड कलेक्सन है।
इस मूर्ति के बारे में अधिक जानकारी आप नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्राहालय की वेबसाइट पर
प्राप्त कर सकते है। यहाँ पर क्लीक करे http://www.nationalmuseumindia.gov.in/prodCollections
बीकानेर संग्राहालय जैन सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति :-
(बीकानेर संग्राहालय में पल्लू गाँव से प्राप्त जैन सरस्वती वाग्देवी मूर्ति)
बीकानेर संग्राहालय में भी पल्लू गाँव से प्राप्त मूर्ति सफेद संगमरमर की बनी जैन सरस्वती वाग्देवी की
है। मुख्य मूर्ति नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्राहालय की मूर्ति से काफी समानता रखती है। किन्तु दाहिने
और पार्श्व भाग में परिचारिकाओं के ऊपर एक -एक लघु आकृति बनी हुई है। इस मूर्ति के दोनों और
पार्श्व में अलंकृत स्तंभो और तोरण से सज्जित है। तोरण के शीर्ष भाग पर तथा दोनों पार्श्व में मन्दिर
के तीन आका बने है। यह मूर्ति बेहद खूबसूरत है।
जिस प्रकार हिंदु प्रतिमाओं में सरस्वती का जो महत्व है वही वाग्देवी सरस्वती का जैन धर्म में है।
ये दोनों जैन सरस्वती प्रतिमाएँ राजस्थान की मध्यकाल की कला उत्कृट कृतियां हैं।
संकलनकर्ता :-जगदीश मनीराम साहू (निवाशी ढाणी छिपोलाई )
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